- RPF जवानों के सामने हॉकरों की धमाचौकड़ी, न रोक-टोक, न ही पकड़े जाने का डर
BOKARO. तारीख 28 फरवरी 2025, समय शाम 4.35 बजे, नई दिल्ली से पुरी जाने वाली पुरुषोत्तम एक्सप्रेस के आने की घोषणा चुकी थी. यात्री प्लेटफॉम पर पहुंच गये थे. आरपीएफ के पुरुष व महिला जवान पहले से प्लेटफॉर्म पर अलर्ट थे. हां उनमें कुछ मोबाइल में बिजी थे तो कुछ आपस में वार्तालाप कर रहे थे. तभी ट्रेन प्लेटफॉर्म में प्रवेश करती है. अचानक स्टेशन के पुरुलिया छोर से दर्जनों की संख्या में हॉकर कंधे पर सामान उठाये दौड़ पड़ते हैं. यह सब हो रहा है आरपीएफ के जवानों के सामने.
न कोई ड्रेस कोर्ड, न ही नाम-एजेंसी को टैग वाला कोई पहचान पत्र. अब इन अवैध हॉकरों को रोकने की कोई पहल नहीं की गयी इसके पीछे का अर्थतंत्र भी साफ है. दरअसल, आरपीएफ (RPF) के लिए अवैध हॉकर हमेशा से दुधारु गाय साबित होते रहे हैं. अपनी मर्जी के अनुसार अवैध हॉकरों को स्टेशन से लेकर ट्रेनों में फेरी करने की छूट देना और जरूरत पड़े तो धरपकड़ कर कोर्ट में पेश देना दैनिक गतिविधियों का हिस्सा रही हैं. हालांकि जब पूरी व्यवस्था ही बेलगाम हो जाये तो यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से यह मामला गंभीर बन जाता है.
हालांकि दक्षिण पूर्व रेलवे में लगभग सभी आईजी के कार्यकाल में अवैध हॉकरों की यह व्यवस्था आम रही है. लेकिन यह कहां जाता है कि आईजी संजय कुमार मिश्र के कार्यकाल में प्रभारियों का ‘रामराज’ आ गया है. हालांकि कुछ केस में आईजी साहब ने कड़ी कार्रवाई की लेकिन उसके बाद फिर से वहीं खेल शुरू हो गया. इसके पीछे उन काबिल इंस्पेक्टरों का दिमाग होता है जो वरीयता क्रम में अगली पंक्ति में खड़े होते हैं लेकिन गलत व अवैध गतिविधियों की जांच को चक्रव्यूह के भंवर जाल में दफन कर देने में माहिर होते है. लिहाजा अवैध हॉकर से लेकर दूसरे मामलों को आईजी तक पहुंचने से पहले ही दबा दिया जाता है.
खैर… अभी बात हो रही है कि बोकारो स्टील सिटी की. यहां चक्रधरपुर रेलमंडल के डांगुवपाेसी से तेज तर्रार माने जानेवाले आरपीएफ इंस्पेक्टर संतोष कुमार की पोस्टिंग सात माह पहले ही हुई है. इसके बाद से यहां अवैध हॉकरों की धमा-चौकड़ी तेज है. बताया जाता हैकि संतोष कुमार उस डिवीजन से होकर आये है जहां टाटानगर से लेकर झारसगुड़ा तक ट्रेनों में हर दिन 400 से अधिक हॉकरों की गतिविधियों पर पूरा सिस्टम मौन है. यहां राउरकेला को तो अवैध हॉकरों का ‘मछली बाजार’ तक कहा जाने लगा था. कुछ महीनों तक यहां अवैध हॉकरों की गतिविधियां कॉमर्शियल विभाग की सख्ती के कारण ठप थी लेकिन कमलेश समाद्दार के आने के बाद से यहां फिर से मछली बाजार सज गया है.
अब सवाल यह उठता है कि बोकारो स्टेशन पर इन अवैध हॉकरों की गतिविधियों को नजर अंदाज करने के पीछे का क्या गणित है? आखिर क्या वजह रही कि दर्जनों की संख्या में अचानक से प्लेटफॉर्म पर दौड़ रहे हॉकरों को देखकर भी आरपीएफ के जवान मौन खड़े रहे ? अवैध हॉकरों का यह खेल यहां सिर्फ पुरुषोत्तम एक्सप्रेस के आने तक ही सीमित है या यहां से गुजरने वाली दूसरी ट्रेनों में भी हॉकरों को रोजगार का भरपूर अवसर प्रदान करने का क्रम जारी है? यहां लगे तीन दर्जन से अधिक कैमरों से ये हॉकर क्यों नजर नहीं आते ? जबाव आरपीएफ के आईजी, कमांडेंट और पोस्ट कमांडर के पास है जो फिलहाल मौन हैं.
