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Maha Kumbh : धाम पर अच्छा कर्म करने वाले ही मरते हैं, इस भाव से धर्म को हम देखने वाले लोग हैं, सरकारें इसका भी फायदा उठा रही हैं

INDIA-RELIGION/KUMBH-STAMPEDE

सब मिलकर आवाज उठाएं तब कुछ चांद पर रौब पड़े….
मैं अकेला जुगनू हूं मेरे चिल्लाने से क्या होगा…………

पूर्व पीएम चंद्रशेखर कहते थे कि नेता का काम आगे बढ़कर जनता को राह दिखाना भी है. श्रद्धालु में बदली जनता को राह दिखाने का ये सही वक्त था या अभी भी है. धार्मिक मठों को भी अपनी सामाजिक भूमिका निभानी चाहिए थी. कह देना चाहिए कि धैर्य रखें. जान जोखिम में डालकर महाकुंभ में ना आएं. इस तरह के बयान व्यवस्था के पोल खुलने का डर या सरेंडर करने जैसे भले लगे, मगर इससे बड़ा संदेश जाता. संभव है कि भीड़ थोड़ी व्यवस्थित हो जाती. खैर, आस्था के नाम पर प्रशासनिक तंत्र की नाकामियां बड़ी आसानी से सनातनी पार्टी के नेताओं ने दबा दी. विपक्ष भी सिर्फ मीडिया के चोंगा और एक्स पर ही गाल बजा रहा है.

न्यायमूर्तियों को मूर्ति नहीं बने रहना चाहिए था

खैर, आस्था के नाम पर नेता और मठाधीश मुंह खोलने से बचेंगे. मगर, सरकारी व्यवस्था के फेल हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों को मूर्ति नहीं बने रहना चाहिए था. कुंभ में जाने और आने के दौरान हो रहे नरसंहार के लिए अब तक हाकिमों पर हंटर चला देना चाहिए था. ये तो हमारा भारत है. मोतियाबिंद वाले आंखों के साथ मोटरी, गठरी लेकर कुंभ निकलीं महिलाएं मौत को भी शुभ बता रही हैं. गुरुवार को श्रमजीवी एक्सप्रेस से दिल्ली जा रही महिला अपनी बहन से कह रही थी कि कुंभ में मरने वाले भाग्यशाली हैं. धाम पर अच्छा कर्म करने वाले ही मरते हैं. इस भाव से धर्म को हम देखने वाले लोग हैं. सरकारें इसका भी फायदा उठा रही हैं.

उम्मीद मोदी से थी, सवाल भी उनसे ही है

उम्मीद मोदी से थी. प्रधानमंत्री को अपना उड़न खटोला विदेश की जगह उत्तर भारत से आ रही भीड़ की तरफ मोड़ना चाहिए था. जिस तरह से बाढ़ और सुखाड़ का हेलीकॉप्टर से सर्वे करते हुए मुख्यमंत्रियों और हुक्मरानों की तस्वीरें पहले पन्ने पर छप जाती हैं. फिर वापस आकर अधिकारियों को कई निर्देश दिये जाते हैं. योजनाएं तैयार हो जाती हैं. हवा से किया गया ये सर्वे भले ही हवा-हवाई होता है. मगर, इससे एक माहौल बनता है. अफसर अलर्ट हो जाते हैं. पीड़ित जनता को भी लगता है कि उनकी खोज-खबर ली जा रही है. इतने बड़े आयोजन में प्रधानमंत्री की किसी भी भूमिका की तस्वीरें, वीडियो, बयान नहीं दिखना, मुझे भले आश्चर्य नहीं लग रहा है. मगर, कम से कम सनातन बचाने के लिए महाकुंभ आ रहे लोगों का सवाल तो उनसे बनता है.

बस इतना ही आग्रह है

एक सवाल यह भी है. ये कुंभ 144 साल बाद आया है. मुझे नहीं पता है कि आने वाले 144 साल बाद इसी तरह का कुंभ आयेगा या इससे भी अच्छा होगा. यह भी जानकारी नहीं है कि ये वाला ही अंतिम है. मगर, इतना तय है कि इस महाकुंभ में डुबकी लगाकर आने वाले में से शायद ही कोई 144 साल बाद जिंदा रहेगा. हां, मगर इस तरह के भगदड़ में कुंभ जाने वाले किस शख्स का दिन अंतिम हो जायेगा, ये बड़ा सवाल बनकर उभरा है. मैं तो इस तरह की अव्यवस्था में बुजुर्गों, गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों से कुंभ नहीं जाने की विनती कर रहा हूं. पूरी तरह तंदरूस्त लोगों से भी मेरा यही आग्रह है.

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