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सेवा में लापरवाही पर रेलवे दोषी करार; यात्री का बैग खोने पर लगा एक लाख से अधिक का जुर्माना

सेवा में लापरवाही पर रेलवे दोषी करार; यात्री का बैग खोने पर लगा एक लाख से अधिक का जुर्माना
  • दिल्ली की उपभोक्ता अदालत का फैसला, बैग चोरी की घटना 2016 में झांसी और ग्वालियर के बीच मालवा एक्सप्रेस के आरक्षित डिब्बे में यात्रा के दौरान हुई थी

NEW DELHI. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक उपभोक्ता अदालत ने भारतीय रेलवे को सेवाओं में लापरवाही बरतने का दोषी पाते हुए रेलवे के संबंधित महाप्रबंधक को एक यात्री को 1.08 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है, जिसका सामान यात्रा के दौरान चोरी हो गया था.

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (मध्य जिला) उस शिकायत पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि यात्री का 80,000 रुपये मूल्य का कीमती सामान वाला बैग जनवरी 2016 में झांसी और ग्वालियर के बीच कुछ बिना टिकट वाले यात्रियों द्वारा चुरा लिया गया था. यह घटना मालवा एक्सप्रेस के आरक्षित डिब्बे में यात्रा के दौरान हुई थी.

आखिर क्या था मामला ?

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में एक यात्री ने शिकायत दर्ज कराई थी. यात्री का आरोप था कि जनवरी 2016 में मालवा एक्सप्रेस के आरक्षित डिब्बे में झांसी और ग्वालियर के बीच अनधिकृत यात्रियों द्वारा उसके बैग चोरी कर लिया गया था. यात्री के अनुसार बैग में ₹80,000 मूल्य के सामान थे. शिकायत में रेलवे की लापरवाही पर जोर दिया गया.

यात्री का कहना था कि “रेलवे का दायित्व है कि वह यात्रा को सुरक्षित और आरामदायक बनाए तथा यात्रियों के सामान की सुरक्षा सुनिश्चित करे. शिकायत में कहा गया कि सुरक्षित और आरामदायक यात्रा के साथ-साथ यात्रियों के सामान की सुरक्षा करना रेलवे का कर्तव्य था.

अदालत ने अपने फैसले में यह कहा…

आयोग ने तीन जून को पारित आदेश में कहा कि चूंकि शिकायतकर्ता नयी दिल्ली से ट्रेन में सवार हुआ था, इसलिए मामले की सुनवाई करना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है. आयोग के अध्यक्ष इंदरजीत सिंह और सदस्य रश्मि बंसल ने मामले की सुनवाई की. आयोग ने कहा कि यदि प्रतिवादी या उसके कर्मियों की ओर से सेवाओं में कोई लापरवाही या कमी नहीं होती, तो ऐसी घटना नहीं होती.

यात्रा के दौरान शिकायतकर्ता द्वारा ले जाए जा रहे सामान के मूल्य को नकारने के लिए कोई अन्य बचाव या सबूत नहीं है, इसलिए शिकायतकर्ता को 80,000 रुपये के नुकसान की प्रतिपूर्ति का हकदार माना जाता है. अदालत ने उन्हें असुविधा, उत्पीड़न और मानसिक पीड़ा के लिए 20,000 रुपये का हर्जाना देने के अलावा मुकदमे की लागत के लिए 8,000 रुपये देने का भी

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