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गलत जानकारी देकर भेजे गए माल पर डिलीवरी के बाद भी रेलवे लगा सकता है जुर्माना : सुप्रीम कोर्ट

  • जस्टिस संजय करोल और जस्टिस पी.के. मिश्रा की खंडपीठ ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि डिलीवरी के बाद पेनल चार्ज नहीं लगाए जा सकते

NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह निर्णय दिया कि रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 66 के तहत, माल/सामान की डिलीवरी के बाद भी—यदि उसमें गलत जानकारी दी गई हो—तो रेलवे जुर्माना लगा सकता है.

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस पी. के. मिश्रा की खंडपीठ ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि डिलीवरी के बाद पेनल चार्ज नहीं लगाए जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि रेलवे ऐक्ट की धारा 66 में शुल्क लगाने के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं बताई गई है, इसलिए इसे किसी भी चरण में लागू किया जा सकता है.

यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब भारतीय रेल ने कई परिवहन कंपनियों—जिनमें प्रतिवादी कंपनी—कामाख्या ट्रांसपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड—भी शामिल थी—पर उनके कंसाइनमेंट में वस्तुओं की गलत जानकारी देने का आरोप लगाते हुए रेलवे ने जुर्माना लगाया. अक्टूबर 2011 से अप्रैल 2012 के बीच रेलवे ने चार मांग पत्र जारी किए, जिसमें घोषित और वास्तविक सामग्री के बीच अंतर पाए जाने पर अधिक माल भाड़ा मांगा गया.
हालाँकि परिवहन कंपनियों ने विरोध दर्ज करते हुए भुगतान कर दिया, लेकिन बाद में उन्होंने गुवाहाटी स्थित रेलवे क्लेम्स ट्राइब्यूनल (#RCT) में धनवापसी की मांग करते हुए याचिका दायर की. उनका तर्क था कि ये मांगें अवैध थीं, क्योंकि वे माल की डिलीवरी के बाद की गई थीं, और उन्होंने रेलवे अधिनियम, 1989 की धाराओं 73 और 74 का हवाला दिया, जिनमें उनके अनुसार केवल डिलीवरी से पहले ही वसूली की जा सकती है.

जनवरी 2016 में #RCT ने परिवहन कंपनियों के पक्ष में निर्णय देते हुए रेलवे को वसूल की गई राशि 6% ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया. आरसीटी/गुवाहाटी के इस फैसले को दिसंबर 2021 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया. इन दोनों निर्णयों को चुनौती देते हुए भारत सरकार (रेलवे) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए, जस्टिस संजय करोल द्वारा लिखित निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने यह मानकर गलती की कि जुर्माना केवल डिलीवरी से पहले ही लगाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “रेलवे अधिनियम की धारा 66 के अनुसार यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति जो माल की ढुलाई के लिए रेलवे के पास लाता है – जैसे कि प्राप्तकर्ता, माल का स्वामी या उसके प्रभारी – उसे माल का विवरण लिखित रूप में रेलवे को देना होता है, ताकि उचित दर निर्धारित की जा सके. उपधारा (4) के अनुसार, यदि दिया गया विवरण झूठा पाया जाता है, तो रेलवे प्राधिकार को यह अधिकार है कि वह उस पर आवश्यक दर से शुल्क वसूल करे. इस धारा में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि यह शुल्क किस चरण पर वसूल किया जाना चाहिए – डिलीवरी से पहले या बाद में. अतः विधायी मंशा यह थी कि इस धारा के तहत किसी भी चरण में शुल्क लगाया जा सकता है, न कि किसी विशेष समय पर.”

इसके अतिरिक्त, सर्वोच्च न्यायालय ने जगजीत कॉटन टेक्सटाइल मिल्स बनाम चीफ कमर्शियल सुपरिंटेंडेंट अन्य (1998) 5 SCC 126 के मामले को वर्तमान मामले से अलग बताया, जिस पर हाई कोर्ट ने पूर्व-डिलीवरी शुल्क के समर्थन में भरोसा किया था. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जगजीत कॉटन का मामला धारा 54(1)—डिलीवरी की सामान्य शर्तों—से संबंधित था—न कि धारा 66 से—इसलिए उसमें दिया गया पूर्व-डिलीवरी शुल्क लगाने का विचार केवल उस संदर्भ में था, न कि एक सार्वभौमिक नियम के रूप में.

इन टिप्पणियों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की अपील को स्वीकार किया और यह निर्णय दिया कि रेलवे गलत विवरण पर आधारित दंडात्मक शुल्क डिलीवरी के बाद भी वसूल कर सकता है.

Courtesy—Live Law: “जानकारी देकर भेजे गए सामान पर डिलीवरी के बाद भी रेलवे जुर्माना लगा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

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