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कहीं बड़ी मुसीबन न बन जाये आरपीएफ डीजी की नयी तबादला नीति, हो सकते हैं दूरगामी परिणाम

देश के टॉप 200 प्रायोरिटी वाले स्टेशनों में टाटा और रांची भी शामिल
  • जोनल स्तर पर इंस्पेक्टरों के तबादलों की तैयारी के बीच बढ़ने लगी है बेचैनी
  • हड़बड़ी में लिया गया अदूरदर्शी निर्णय बता रहे आरपीएफ के आला अधिकारी
  • जोनल स्तर पर तबादलों के बाद हाईकोर्ट से स्टे न ले सके इसलिए लगायी जा रही केविएट

नई दिल्ली. रेल सम्पति और यात्रियों की सुरक्षा के लिए गठित रेलवे सुरक्षा बल को रिजर्व फोर्स में बदलने की तैयारी शुरू हो गयी है. इसके लिए डीजी आरपीएफ अरुण कुमार ने विभागीय कैडर में बदलाव की रणनीति के तहत मंडल स्तर पर होने वाले इंस्पेक्टरों के तबादले को जोन स्तर पर करने का नीतिगत निर्णय लिया है. इसके लिए कागजी प्रक्रिया शुरू करते हुए सभी जोनल आईजी को जरूरी दिशा-निर्देश दे दिये गये है. यह माना जा रहा है कि तबादलों के बाद बड़ी संख्या में इंस्पेक्टर कोर्ट की शरण लेकर स्टे लेने का प्रयास कर सकते है, इसलिए जोनल स्तर पर हाईकोर्ट में कैविएट लगायी जा रही है, ताकि आदेश का अनुपालन हर हाल में सुनिश्चित कराया जा सके. डीजी की इस पहल से इंस्पेक्टर संवर्ग में बेचैनी तेज हो गयी है वहीं सुरक्षा बल के जानकारों ने इसे हड़बड़ी में लिया गया अदूरदर्शी निर्णय करार दिया है. ऐसे लोगों को आशंका है कि डीजी की नयी तबादला नीति कहीं बड़ी मुसीबत का कारण न बन जाये.

आरपीएफ इंसपेक्टर को केंद्रीय बलों की तरह तबादले से नहीं जोड़ा जा सकता है. क्योंकि केंद्रीय बलों के पास जांच और अनुसंधान का दायित्व नहीं होता है उनकी जिम्मेदारी सिर्फ विधि-व्यवस्था संधारण तक सीमित होती है. इसके विपरीत आरपीएफ में पोस्ट का प्रभारी निरीक्षक स्थानीय स्तर पर रेलवे में होने वाले हर अपराध को रोकने से लेकर उसकी जांच और अनुसंधान से सीधे तौर पर जुड़ा होता है.

कहीं बड़ी मुसीबन न बन जाये आरपीएफ डीजी की नयी तबादला नीति, हो सकते हैं दूरगामी परिणामरेलवे सुरक्षा बल से जुड़ा बड़ा वर्ग यह मान रहा है कि डीजी आरपीएफ रेलवे की सुरक्षा को लेकर गंभीर है और उनका ईमानदार प्रयास है कि हर हाल में रेलवे की संपत्ति और यात्रियों की सुरक्षा को मजबूत बनाया जा सके. लेकिन जो पहल डीजी की ओर से की जा रही है उसके दूरगामी व विपरीत परिणाम भी हो सकते है. जानकारों का मानना है कि आरपीएफ इंसपेक्टर को केंद्रीय बलों की तरह तबादले से नहीं जोड़ा जा सकता है. क्योंकि केंद्रीय बलों के पास जांच और अनुसंधान का दायित्व नहीं होता है उनकी जिम्मेदारी सिर्फ विधि-व्यवस्था संधारण तक सीमित होती है. जहां उनकी तैनाती होती है वहां जांच और अनुसंधान का कार्य स्थानीय पुलिस करती है.

इसके विपरीत आरपीएफ में पोस्ट का प्रभारी निरीक्षक स्थानीय स्तर पर रेलवे में होने वाले हर अपराध को रोकने से लेकर उसकी जांच और अनुसंधान से सीधे तौर पर जुड़ा होता है. उसे अपने पोस्ट और क्षेत्राधिकार में मुखबिर और लोकल सिस्टम तैयार करना होता है. जोनल स्तर पर तबादला होने की स्थिति में इस तंत्र को तैयार करने में काफी समय लगेगा और तब शायद रेलवे सम्पति की सुरक्षा भी प्रभावित होगी. इसके अलावा जांच और कार्रवाई के लिए भी उन्हें समय नहीं मिलेगा. तबादले की स्थिति में पुन: पोस्ट के अंतर्गत होने वाले अपराधों की समीक्षा और नियंत्रण में परेशानी होगी. ऐसे लोगों का तर्क है कि मंडल स्तर पर होने वाले तबादलों से लंबित प्रकरण व जबावदेही के लिए इंस्पेक्टर बाध्य होते है जबकि दूसरे जोन में तबादला होने से लंबित प्रकरणों की जांच पर भी असर पड़ सकता है.

तमाम तर्क और दावों के बीच हर जोनल में तबादलों की सूची तैयार की जा रही है जो शीघ्र ही जारी की जा सकती है. नयी नीति में डीजी आरपीएफ ने निरीक्षक के अलावा अन्य आरपीएफ स्टाफ को भी किसी भी जोन में जाने का अवसर देने की बात कही गयी है. आरपीएफ मुख्यालय का मानना है कि रेलवे को जोन या मंडल की सीमा से नहीं बांधा जा सकता, सुरक्षा कर्मियों को देश में कहीं भी नौकरी कराई जा सकती है. डीजी के इस संकेत के बाद से ही निरीक्षकों में संशय की स्थिति घर कर गयी है. माना जा रहा है कि नयी तबादला नीति से बड़ी संख्या में इंस्पेक्टर प्रभावित होंगे जो एक शहर और राज्य में अपने परिवार को स्थापित कर चुके है. उन्हें खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना होगा.

आरपीएफ डीजी को चुनौती दे रहे भ्रष्टाचारी, कमांडेंट पर कार्रवाई के विरोध में उतरा FROA और PROA

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