टाटानगर रेलवे स्टेशन पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. सभी मजे में जी-खा रहे थे. आपसी मेलजोल ऐसा की फेविकाेल का मजबूत गठजोड़ भी शरम से पानी-पानी हो जाये. स्टेशन के बाहर दुकानदार से लेकर टेंपाे वाले सी मस्त थे. स्टेशन पर खाकी वर्दी का कानून इतना प्रभावशाली था कि किसी को किसी से डरने की जरूरत नहीं. भयमुक्त वातावरण में स्टेशन के आउटगेट पर टेंपो खड़ी कर चालक बाहर से आने वाले यात्रियों की सेवा में तत्पर रहते थे. बाहर फुटपाथ पर दुकानें आबाद थी. एक-दूसरे का ध्यान रखकर पूरी ईमानदारी से काम चल रहा था.
21 दिसंबर 2022 की शाम को अचानक सादे लिबास में आये वर्दी वाले एक साहब नाराज हो गये. नाराजगी का कारण तो पता नहीं चल सका लेकिन उनके गुस्से से स्टेशन के बाहर का अर्थतंत्र ही डगमगा गया. पहले रेलवे पार्किंग में लगी दो दुकानों को हटा दिया गया. दो दुकानदारों की कमाई बंद हुई तो इसका असर ऊपर तक पड़ा. असर और आक्रोश की चिंगारी में नीचे के स्टेशन की और दुकानें भी आ गयी. शाम तक अभियान चलाकर एक दर्जन से अधिक दुकानों को हटा दिया गया. एक ही झटके में गरीब बेरोजगार हाे गये तो हर दिन की कमाई का औसत भी नीचे गिर गया.
अब इसमें बताने वाली बात नहीं है कि इन दुकानों से कई गरीब आश्रित थे. इन गरीबों में दुकानदारों से लेकर वर्दी वाले साहब और स्टेशन पर सफेद चमकदार ड्रेस वालों की उम्मीद भी हर माह टिकी होती है. यहां चलने वाला अर्थतंत्र मुंशी प्रेमचंद्र के “मासिक आय तो पूर्णमासी का चांद होता” है कि कहावत को इस युग में सार्थक बनाता है. हर किसी की उम्मीद की गाड़ी बेइमानी से चलने वाले इन दुकानदारों की मेहनत पर टिकी है. हालांकि वर्दी वाले साहब के पास तो कई विकल्प भी मौजूद हैं क्योंकि स्टेशन से लेकर ट्रेनों में डेली हॉकर तो चल ही रहे हैं. एक बंद हुआ तो आय के दूसरे स्रोत पर नजर कस गयी है. कल तक नहीं दिखने वाले अवैध हॉकर अब साहब को स्टेशन पर नजर आने लगे हैं. चुन-चुनकर धरपकड़ शुरू हो गयी. खबर है कि दुकानदारों पर भी साहब की मेहरबानी बरसने वाली है, दुकानें लगाने की हरी झंडी दे दी गयी है.. धन्य हो व्यवस्था…
क्रमश :