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खुला मंच/विचार

आगरा … यहां मालगाड़ी के नीचे से गुजरकर जाती है शव यात्रा

  • उत्तर प्रदेश में छः साल में रेलवे ने खर्च किये 10,600 करोड़, फिर भी नहीं बना अंडरपास
  • आज भी जान जोखिम में डालकर स्कूल-कॉलेज जाते है बच्चे, बुजुर्ग सुनाते है कहानी

आगरा. देश में एक ऐसी भी जगह है जहां लोग शव यात्रा को मालगाड़ी के नीचे से लेकर जाते है. वह भी गैरकानूनी रूप से और यह सब होता है सामाजिक ताना-बाना के नाम पर जहां रेलवे अधिकारी और सुरक्षा बल के जवान मौन साधने को मजबूर होते है. मजबूरी तो उस बड़ी आबादी की भी हो आज रेलवे पटरी से होकर आना-जाना करने को विवश है. बार-बार की गयी शिकायत और गुहार के बावजूद यहां अंडरपास की स्वीकृति नहीं दी गयी और बड़ी आबादी आज जान जोखिम में डालकर रेलवे पटरी से होकर गुजरने को विवश है.

हम बात करत रहे है उत्तर प्रदेश के आगरा कैंट रेलवे स्टेशन की. स्टेशन के पास स्थित नगला पुलिया, शिवनगर, बारह बीघा, महावरी नगर, राधेवाली गली, बाल्मिकी बस्ती आदि इलाके में लाखों की आबादी निवास करती है. इस आबादी को कैंट स्टेशन से ईदगाह रेलवे स्टेशन, आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन, मुस्तफा क्वार्टर, सुल्तानपुर, सदर बाजार के लिए जाने का एकमात्र नजदीकी रास्ता रेलवे लाइन के नीचे से बनी संकरी पुलिया है जिसकी चौड़ाई मात्र तीन फीट जबकि ऊंचाई पांच फीट है.

चौड़ा रास्ता नहीं होने से बड़े वाहन, एंबुलेंस, टैक्सी, टेंपो आदि इस मार्ग से नहीं गुजर सकते. गंभीर मरीजों को काफी परेशानी होती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हर स्टेशन पूर्व और पश्चिम की दिशा से रेलवे लोगों के आने-जाने के लिए रास्ता उपलब्ध कराती है. जबकि आगरा कैंट स्टेशन पर सिर्फ पूर्वी क्षेत्र से स्टेशन पहुंचने का रास्ता है.

कैंट स्टेशन से पूर्व दिशा में फोर्ट स्टेशन, ईदगाह स्टेशन, प्रतापपुरा, सदर बाजार, सुल्तानपुरा आगरा कैंट स्टेशन हैं. इस क्षेत्र में बड़ी आबादी के आवागमन का रास्ता काफी छोटा है और यह लोगों की आवाजाही के अनुपात में नाकाफी है. बारिश होने पर राधेवाली गली में जलभाव होने से आने-जाने का रास्ता कीचड़ से बंद हो जाता है. इसके बाद लोगों को रेलवे लाइन पार कर जाना होता है.

यह भी जानें : उत्तर प्रदेश में छः वर्षों में रेलवे की आधारभूत संरचना पर 10,600 करोड़ का निवेश : पीयूष गोयल

यह बड़ी बात है कि न्यू लाइन में हमेशा मालगाड़ी खड़ी रहती है. इसके नीचे से होकर ही स्कूल-कॉलेज के बच्चे आते-जाते हैं. बड़े-बूढ़ों को भी यही तरीका आजमाना पड़ता है. परेशानी तो तब होती है जब शवयात्रा भी इसी रास्ते से ले जानी पड़ती है और वह भी मालगाड़ी के डिब्बे के नीचे से. यह सोचने की बात है कि अगर मालगाड़ी चल दे तो क्या होगा?

स्थानीय लोगों की वर्षों से यहां अंडरपास बनाने की मांग रही है ताकि इस मार्ग से होकर वाहनों की आवाजाही शुरू हो सके. बड़ी संख्या में लोग कार्यालय के लिए भी इसी रास्ते का इस्तेमाल करते है जिन्हें हमेशा परेशानी होती है लेकिन कानून तोड़कर हर दिन सैकड़ों लेाग रेलवे लाइन के आरपार हो रहे हैं.

दो दिन पहले रेलमंत्री पीयूष गोयल ने यह बात बतायी कि बीते छह सालों में उत्तर प्रदेश में रेलवे ने इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 10 हजार 600 करोड़ रुपये खर्च किया. ऐसे में यह बात उठायी जानी स्वाभाविक है कि तो क्या यह मान लिया जाये कि आगरा कैंट स्टेशन के पास एक अंडरपास की मांग को रेल  अधिकारियों ने कभी गंभीरता से लिया ही नहीं ?

 

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