- रोज एक हजार रेलकर्मी हो रहे संक्रमित, 1952 गंवा चुके हैं जान, आखिर अब किसका इंतजार
डॉ अनिल कुमार, नई दिल्ली
कोरोना काल में देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाले रेलकर्मियों की दुदर्शा की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है. बिना पर्याप्त संसाधन के मोर्चे पर झोंक दिये गये रेलकर्मी एक साल से भी अधिक समय से ट्रेनों का परिचालन जान जोखिम में डालकर कर रहे है. परिणाम हुआ कि अब तक 1952 रेलकर्मियों की मौत हो चुकी है, जबकि हर दिन लगभग 1000 रेलकर्मी संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं. 4000 से अधिक रेलकर्मी और उनके परिवार के लोग संक्रमित होकर अस्पतालों में भर्ती है. यह संख्या लगातार बढ़ रही है.
यह आकड़ा चिंताजनक और चौकाने वाला है. वह भी ऐसे में जबकि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन सह सीईओ सुनीत शर्मा ने बीते दिनों मीडिया के सामने आकर आकड़ों को रखते हुए कहा कि ”हम अपने स्टाफ का ध्यान रखते हैं. हमारे पास अपने अस्पताल हैं. हमने उनमें ऑक्सीजन प्लांट बनाए हैं. हमारे पास अपने स्टाफ व उनके परिवार के लिए चार हजार बेड हैं. हमारी कोशिश रहती है कि वह जल्दी ठीक हों”. हकीकत इसके विपरीत है. एक साल के लंबे समय में भी रेलवे अपने संसाधनों को दुरुस्त करने में नाकाम रहा है. रेलवे अस्पताल रेफरल की भूमिका में हैं.
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कई जोन व डिवीजन में संक्रमण की चपेट में आने वाले रेलकर्मियों को इलाज नहीं मिलने की सूचनाएं मिली है. बेड और ऑक्सीजन के रेलकर्मी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटक रहे. उनके लिए किये गये सभी इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं. सबसे बुरी स्थिति फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स घोषित रेलकर्मियों की टीकाकरण को लेकर है, जिन्हें अस्पतालों में टीका के लिए लगातार इंतजार करना पड़ रहा है.
”हम अपने स्टाफ का ध्यान रखते हैं. हमारे पास अपने अस्पताल हैं. हमने उनमें ऑक्सीजन प्लांट बनाए हैं. हमारे पास अपने स्टाफ व उनके परिवार के लिए चार हजार बेड हैं. हमारी कोशिश रहती है कि वह जल्दी ठीक हों”
सुनीत शर्मा, चेयरमैन सह सीईओ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेलकर्मियों को फ्रंटलाइन वारियर्स कहकर संबोधित किया था. रेलवे के दोनों फेडरेशनों फेडरेशन एनएफआईआर एवं एआईआरएफ ने भी प्रधानमंत्री, रेलमंत्री और सीईओ रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर रेलकर्मियों तथा उनके परिजनों को कोरोना योद्धा मानकर टीकाकरण में प्राथमिकता देने की मांग की है. लेकिन उनकी मांग पर कोई सुनवाई नहीं हुई र्है. न तो रेलकर्मियों को योद्धा दर्जा मिला न ही कोरोना से मरने वाले रेलकर्मियों को 50 लाख का मुआवजा.
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रही सही कसर वैक्सीन ने पूरी कर दी जिसके लिए रेलकर्मी परिवार भटकने को विवश हैं. इसे लेकर रेलकर्मियों में प्रशासन के खिलाफ गहरा आक्रोश पनप रहा है. राहत की बात यह है कि स्थानीय स्तर पर मंडल रेल प्रबंधकों ने जरूर स्टेट स्वास्थ्य विभाग से अनुरोध कर वैक्सीनेशन में रेलकर्मियों को प्राथमिकता देने और उन्हें अधिक से अधिक वैक्सीन उपलब्ध कराने का अनुरोध कर प्रयास जारी रखा है जिससे कुछ स्थिति सुधार की ओर हैं.
रेलकर्मियों को फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर की तरह टीका देने की मांग इंडियन #AIRF, #NFIR, #IRTCSO, #AISMA, #AIRTU, #IRS&TMU समेत दूसरे संगठन कर चुके है. उनकी मांग है कि 45 साल से कम उम्र के टिकट चेकिंग स्टाफ, ड्राइवर, गार्ड, ट्रैक मेंटेनर, सिग्नल स्टॉफ, एसी/कोच अटेंडेंट और पेंट्रीकार में सेवा देने वाले कर्मचारियों का टीकाकरण कराया जाये क्योंकि संक्रमित होने वालों में इनकी संख्या अधिक है. तभी वह निर्भय होकर अपना संपूर्ण योगदान दे सकेंगे.
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रेलवे मेंस यूनियन की आदित्यपुर शाखा के अध्यक्ष मुकेश सिंह की अगुवाई में बैठक कर तत्काल स्थानीय हेल्थ यूनिट में वैक्सीनेशन शुरू करने की मांग की है. मुकेश सिंह के अनुसार आदित्यपुर में लगभग दो हजार रेलकर्मी परिवार के सदस्य रहते है जबकि यहां एक एंबुलेस तक की व्यवस्था नहीं है. उन्होंने बताया कि सिर्फ अप्रैल में ही 52 रेलकर्मियों की मौत डिवीजन में हो चुकी है जो डर व दहशत का कारण बना हुआ है. फ्रंट लाइन स्टॉफ होने के बावजूद अब तक रेलकर्मी सिर्फ सरकारी अस्पताल एमजीएम पर आश्रित है यह भविष्य में बुरी स्थिति का संकेत है. उन्होंने मरने वाले रेलकर्मियों को कोरेाना योद्धा करार देते हुए 50 लाख का मुआवजा देने और तत्काल वैक्सीनेशन के साथ एंबुलेंस की व्यवस्था देने की मांग मंडल रेल प्रशासन से की है. इस मौके पर सचिव डी अरुण, ए महाकुड़, राजेश कुमार, ए बेहरा, रवि नायर आदि वेबिनार पर आयोजित बैठक में शामिल हुए.
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