Elephant on railway track : रेलवे के तमाम उपायों के बावजूद ट्रैक पर हाथियों की मौत रोकने में सफलता नहीं मिल सकी है. झारखंड के चांडिल-मुरी सेक्शन में इचाडीह फाटक के सामने बुधवार देर रात ट्रेन से कटकर एक हाथी की मौत हो गयी. इस टक्कर से रेलवे का पोल में झुक गया. इस घटना के कारण सुबह सात बजे तक ट्रेनों का परिचालन सेक्शन पर बाधित रहा.
कोल्हान के चांडिल, नीमडीह, कुकडु व ईचागढ़ प्रखंड में जंगली हाथियों के झुंडों का आना नयी बात नहीं है. यहां अक्सर हाथी आते है ओर कई बार ट्रेन की चपेट में आकर उनकी मौत तक हो जाती है. उधर एक अलग घटना क्रम में उत्तराखंड के ऋषिकेस में दो हाथियों के मोतीचूर स्थित रेलवे ट्रैक के किनारे पहुंच जोन के बाद ट्रेनों को रोकना पड़ा. हालांकि यहां किसी भी हाथी की मौत नहीं हुई.
बताया जा रहा है कि यहां नर हाथियों के बीच संघर्ष हो गया था. हाथी लड़ते हुए रेलवे ट्रैक किनारे आ गए. उसी समय देहरादून से इलाहाबाद जा रही लिंक एक्सप्रेस को रोकना पडा. बाद में वनकर्मियों ने दोनों हाथियों को अलग-अलग दिशा में खदेड़कर रेलवे ट्रेक खाली कराया. हाथी रेलवे ट्रैक पर न आ जाए इसके लिए टीम लगातार गश्त कर रही है.
हालांकि इन दोनों घटनाओं में रेलवे की भूमिका तटस्थ रही है. रेलवे ने अलग अलग शहरों से कई बार रेलवे ट्रैक पर हाथियों के की मौत की घटनाओं से बचाव के लिए गजराज नाम की नई तकनीक विकसित की थी. कहा गया कि इसे उन राज्यों में लगाया जायेगा जहां हाथियों की संख्या अधिक है. इससे हाथियों के एक्सिडेंट में मौतों को रोकने में मदद मिलेगी. रेलवे ने इस सिस्टम का नाम ‘गजराज’ दिया था. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गजराज के बारे में बताया था कि यह कवच सिस्टम की तरह काम करेगा. हालांकि अब तक इसका प्रभाव कहीं नजर नहीं आया है.
हर साल करीब 20 हाथियों की होती है मौत, कई राज्यों में गजराज लगाने की योजना
देश में कई राज्यों में हाथियों की आबाद ज्यादा है. वहां कई बार रेलवे ट्रैक पर हाथी पहुंच जाते हैं. एक आकड़े के अनुसार 20 हाथियों की हर साल रेलवे ट्रैक पर मौत हो जाती है. रेल मंत्री ने हाथियों की रक्षा के लिए कवच प्रणाली की ही तरह गजराज का इस्तेमाल असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तमिलनाडु, केरल और झारखंड में करीब 700 किलोमीटर पर लगाने की योजना का खुलासा किया था. इसमें सेंसर तकनीक का इस्तेमाल किया जाना था.
इसमें यह तकनीकी लगायी जाने की बात थी कि सॉफ्टवेयर 200 मीटर की दूरी से हाथियों के पैरों के चलने की तरंगों को पहचान कर ट्रेन चालक को अलर्ट कर देगा. इसके बाद लोको पायलट समझ जाएगा कि ट्रैक पर या उसके आसपास हाथी हैं. इसके बाद ट्रेन की स्पीड को धीमा कर चलायेगा. हालांकि झारखंड में कई जगह जंगल के बीच हाथियों के रेलवे ट्रैक पर आने से रोकने के लिए बाड़ भी लगायी गयी लेकिन बावजूद दुर्घटनाओं को रोकने में बहुत अधिक कामयाबी नहीं मिल सकी है.