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टाटानगर स्टेशन के ड्रॉपिंग लाइन में बैरियर लगाकर ठेकेदार कर रहा वसूली, क्या है आदेश…

  • स्टेशन परिसर में यात्रियों से अवैध वसूली पर रेलवे अधिकारी भी कटघरे में
  • स्टेशन डायरेक्टर अपने चैंबर में बैठकर कर रहे शिकायत मिलने का इंतजार

जमशेदपुर. टाटानगर रेलवे स्टेशन के परिसर में कानून-व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गयी है. आम यात्री यह जानना चाहता है कि यहां का प्रशासन किसके हाथ में है? यहां प्रशासन कौन चला रहा है, रेलवे अधिकारी अथवा पार्किंग ठेकेदार? अहम सवाल यह है कि यहां ऑटोमेटिक बैरियर लगाकर तीन दिनों से यात्रियों से अवैध वसूली की जा रही थी और इसकी जानकारी रेलवे अधिकारियों को नहीं हुई. स्टेशन डायरेक्टर  रघुवंश कुमार ने स्थानीय मीडिया को दिये बयान में बताया है कि वसूली की उन्हें जानकारी नहीं है. उन्होंने यह जरूर कहा कि पांच मिनट तक वसूली नहीं की जानी चाहिए. लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इसे निर्धारित कौन एजेंसी करेगी? वसूली कौन लोग करेंगे और अगर इसे ठेकेदार को अधीन कर दिया गया तो इसके लिए निर्धारित मापदंड क्या होने चाहिए?

स्थानीय मीडिया में प्रकाशित खबर

शनिवार को स्थानीय मीडिया में पार्किंग के ड्राॅपिंग लाइन में अवैध वसूली की खबर सामने आयी तो रेल प्रशासन की नींद खुली. इससे पहले विभिन्न माध्यमों से यह बात रेलवे के आला अधिकारियों तक पहुंचायी गयी कि चक्रधरपुर मंडल रेल प्रशासन ने आनन-फानन में एक नया सकुर्लर जारी कर पार्किंग ठेकेदार को ड्रॉपिंग लाइन में शुल्क वसूली का अधिकार दे दिया है. ऐसा बताया जा रहा कि ये तथ्य पार्किंग के टेंडर में है ही नहीं? जोनल रेलवे विजिलेंस और विजिलेंस डॉयरेक्टर को भेजे पत्र में इसे ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया इंतजाम बताया गया है. अब तक रेलवे इस फैक्ट पर चुप है लेकिन ठेकेदार ने उसी लेटर का हवाला देकर यहां इलेक्ट्रॉनिक गेट लगाकर वसूली शुरू कर दी. जब यात्रियों ने इसका विरेाध किया तो हंगामा होने लगा. यहां यह बात जानने वाली है कि यह पत्र किसने जारी किया और किन परिस्थतियों में कब जारी किया?

अब तक जो बातें सामने आयी है कि उसके अनुसार रेलवे कॉमर्शियल विभाग की ओर से ठेकेदार को पार्किंग के टर्म कंडीशन से इतर जुलाई माह में पत्र जारी कर दिया गया कि वह ड्रॉपिंंग लाइन से भी शुल्क वसूली कर सकता है. इसमें कुछ क्लॉज भी शामिल किये गये है लेकिन रेलवे ठेकेदार इसकी आड़ में सभी तरह के वाहनों से शुल्क वसूलने लगा है. यही नहीं रेलवे के इस पत्र का हवाला देकर ठेकेदार के कर्मचारियों ने विधि-व्यवस्था को भी अपने हाथ में लेने से गुरेज नहीं किया. अब कर्मचारी नो-पार्किंग में खड़ी होने वाले वाहनों पर कार्रवाई तक की बात कहने लगे है जिसका अधिकार रेल पुलिस अथवा आरपीएफ के पास ही है.

दरअसल, यह व्यवस्था पूर्व से रही है कि स्टेशन के ड्रॉपिंग लाइन में लोग गाड़ी लेकर आयेंगे और पांच मिनट के भीतर सवारी उतारकर चले जायेंगे.यहां अगर किसी ने वाहन खड़कर किया तो उसे नो-पार्किंग जोन में गाड़ी खड़ी करना माना जायेगा और उस पर कार्रवाई रेल पुलिस अथवा आरपीएफ के लोग करेंगे. ऐसा हमेशा से होता रहा है क्योंकि विधि-व्यवस्था की जिम्मेदारी उनकी ही है. लेकिन पूर्व के ठेकेदारों ने इस सिस्टम का दुरुपयोग किया और यहां आने वाले हर वाहन से जबरन वसूली शुरू कर दी थी. इसे लेकर यह हमेशा से विवाद होता रहा है. रेलवे ठेकेदारों का तर्क होता है कि बड़ी राशि देकर उन्होंने टेंडर लिया है तो उसकी भरपायी वह किस तरह करेंगे?

इस बार ठेकेदार को यह फेवर रेलवे ने कानूनन दे दिया है. लेकिन नया विवाद रेलवे द्वारा टेंडर के छह माह बाद जारी किये गये पत्र को लेकर है. जो टेंडर के मूल शर्तों के विपरीत बताया जा रहा है. सवाल उठता है कि क्या नीतिगत मामलों में बदलाव का करने का अधिकार टेंडर के छह माह किसी को है, वह भी जिससे ठेकेदार हित सुरक्षित होता हो न कि यात्रियों का ?

रेलवे जल्द ही इसे लेकर अपना रुख स्पष्ट करने वाला है जिसमें मीडिया को बताया जायेगा कि किन परिस्थतियों में टेंडर के छह माह बाद नया पत्र और दिशा-निर्देश जारी किये गये? यह टेंडर के मूल प्रावधान के अनुसार है अथवा नहीं? प्रावधान में था तो इसे शुरू में ही क्यों नहीं अमल में लाया गया? रेलवे पार्किंग के बीच से होकर बनाये गये पथ-वे को क्यूं बंद करके रखा गया है जिस पर यात्रियों की सुविधा के लिए लाखों रुपये खर्च किये गये? इस सुविधा से यात्रियों को क्यो वंचित कर दिया गया? रेलवे ने टाटानगर स्टेशन के सेकेंड इंड्री में ड्रॉपिंग की क्या व्यवस्था की है?

छोटानागपुर पैसेंजर्स एसोसिएशन के सचिव डॉ अरुण कुमार ने पूरे मामले को रेल महाप्रबंधक और रेल मंत्री को पत्र भेजकर उठाया है. उन्होंने सवाल उठाया है कि बार-बार इस मुद्दे को गंभीरता से उठाने के बाद भी रेलवे इसका स्थायी समाधान नहीं कर रहा है. उल्टे नया विवाद ड्रॉपिंग लाइन की व्यवस्था से ठेकेदार को कानून जोड़कर कर दिया गया है जो किसी तरह जायज नहीं है. वहीं अन्य संगठनों का कहना है कि रेल मंत्री को पूरे मामले की जांच करानी चाहिए कि आखिर क्या वजह है कि राजस्व वसूली के नाम पर यहां रेल अधिकारियों ने टाटानगर में यात्री सुविधाओं से ही किनारा कर लिया है. ये न सिर्फ सरकार बल्कि रेल मंत्री की योजनाओं को पलीता लगाने वाला कदम साबित हो रहा है.

क्रमश:

 

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