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TATANAGAR : स्टेशन पर फायरिंग, हत्या, अपहरण, आत्महत्या की घटनाएं, … ‘साहब’ को चाहिए ‘एक्सटेंशन’ !

  • आरपीएफ के मौन से स्टेशन परिसर बन गया टेंपो स्टैंड, इन-आउट गेट रहता हर दिन जाम 
  • प्लेटफॉर्म पर यात्रियों की सुरक्षा का हाल बेहाल, जांच के नाम पर सिर्फ मशीनें कर रही खानापूर्ति  
  • अवैध कमाई का जरिया बन गयी है कि आरपीएफ पोस्ट के सामने लग रही 80 से अधिक दुकानें   

आरपीएफ में इंस्पेक्टरों को (TMM) ट्रांसफर माड्यूल से बाहर किये जाने की अधिसूचना जारी हाे चुकी है. दक्षिण पूर्व रेलवे में अगले 10 दिनों में इंस्पेक्टरों के तबादलों की सूची जारी होने की संभावना के बीच मनपसंद पोस्टिंग के लिए इंस्पेक्टरों ने लॉबिंग शुरू कर दी है. चूंकि अब तबादलों का अधिकार जोनल आईजी के पास है तो उनकी पसंद कई मायनों में अहम हाे गयी है. ऐसे में तबादलों का टर्म पूरा करने वाले हर इंस्पेक्टर की दौड़ कोलकाता की ओर है. इस दौड़ में जोन के सबसे सेंसेटिव पोस्ट में शामिल टाटानगर, बोकारो, राउरकेला आदि ही हॉट बने हुए है. हालांकि इस दौड़ में टाटानगर के तत्कालीन प्रभारी संजय कुमार तिवारी भी शामिल हैं. हालांकि उनकी दौड़ बेहतर पोस्ट पर तबादला पाने से अधिक एक्सटेंशन के लिए है.

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आरपीएफ के सूत्रों की माने तो संजय कुमार तिवारी ने पुत्र की शिक्षा को आधार बनाकर टाटानगर में पाेस्टिंग में एक साल का विस्तार मांगा है. यहां यह बताना जरूरी है कि टाटानगर जोन (SOUTH EASTERN RAILWAY) का सबसे अहम स्टेशन है जहां यात्रियों की सुरक्षा और विधि-व्यवस्था अधिक मायने रखती है. अगर बीते दो साल के बीच की घटनाओं की चर्चा करें तो टाटानगर में विधि-व्यवस्था के रूप में स्टेशन पर आरपीएफ की सुरक्षा पूरी तरह धवस्त नजर आयी. स्टेशन पर दो बार फायरिंग की घटना हुई, एक यात्री की हत्या हो गयी, रेलकर्मी की आत्हत्या, मारपीट की कई घटनाओं से लेकर स्टेशन प्लेटफॉर्म से बच्ची के अपहरण ने आरपीएफ को बार-बार सवालों में खड़ा किया…शर्मिंदा किया है. बच्ची के अपहरण के बाद संजय कुमार तिवारी को अटैच भी किया गया था.

इन घटनाओं में आरपीएफ की मुस्तैदी कही नजर नहीं आयी. इसके लिए जिम्मेदारी तो आरपीएफ के कमांडेंट और आईजी को तय करना है लेकिन यात्रियों और पत्रकारों की नजरिये से देखा जाये तो बीते 20 सालों में ऐसी खराब व लाचार व्यवस्था टाटानगर स्टेशन पर कभी नजर नहीं आयी. इसे व्यवस्था का भ्रष्टाचार कहा जाये या भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था यह समझना मुश्किल है. स्टेशन परिसर के भीतर टेंपो आकर खड़े कर दिये जाते हैं, टेंपो चालक बेखौफ सवारी लेने के लिए प्लेटफॉर्म तक पहुंच जाते हैं, स्टेशन के इन और आउट गेट के दोनों ओर ठेला-खोमचें वालों का कब्जा है, ट्रेनों मे बेखौफ वेंडर फेरी करते हैं, आरपीएफ पोस्ट के ठीक सामने मुख्य मार्ग पर इन गेट से लेकर आउट गेट तक 80 से अधिक दुकाने स्थायी रूप से बसा दी गयी हो. कौन है जिम्मेदार ?

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हम यार्ड में लगातार हो रही चोरियों, मालगाड़ी पर चढ़कर कोयला उतारने वाले लोगों, रेलवे क्षेत्र में खुल गये अवैध टालों की बात नहीं कर रहे. अब तक बात सिर्फ यात्रियों की सुरक्षा व सुविधा की हो रही है. यहां स्टेशन के प्रथम व सेकेंड इंट्री में नाम के लिए मशीनें तो लगा दी गयी है लेकिन जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही. हां, राजस्व उगाही में टाटानगर स्टेशन हमेशा से अग्रणी रहा है. यह अलग बात है कि यह राजस्व रेलवे को नहीं जाता. संजय कुमार तिवारी की पैरवी का लोहा आरपीएफ के लोग भी मानते रहे हैं और चर्चा है कि जोनल आईजी से बात करने के बाद साहब अब डीजी/आरपीएफ के पास गये है ताकि एक्सटेंशन को फाइनल किया जा सके.

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यह परिस्थितियां हो या पहुंच का प्रभाव लेकिन महकमे में चर्चा रही है कि संजय कुमार तिवारी हमेशा से सेंसेटिव पोस्ट पर ही रहे हैं. उन्होंने कभी नन सेंसेटिव पोस्ट का मुंह तक नहीं देखा. खड़गपुर का मार्सलिंग यार्ड हो या चक्रधरपुर सीआईबी या मनोहरपुर पोस्ट से होते हुए टाटा पहुंचना, यह सामान्य बात नहीं है. आरपीएफ में ही इस बात की चर्चा कि संभव है एक  बार फिर संजय कुमार तिवारी को एक साल का एक्सटेंशन मिल भी जाये लेकिन यह न तो आरपीएफ पोस्ट के हित में होगा न ही बल के. फिलहाल डीओ जारी होने से पहले सभी इंस्पेक्टरों की दौड़ आईजी कार्यालय तक जारी है.

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