देश-दुनिया

आरपीएफ को सुप्रीम कोर्ट में भी मिली फटकार, पांच लाख जुर्माना भरने का निर्णय रखा बरकरार

  • आरपीएफ सब-इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी के मामले में गुजरात हाईकोर्ट का फैसला मान्य
  • हाईकोर्ट ने अधिवक्ता किरण साह ने टारगेट कर सब इंस्पेक्टर को प्रताड़ित करने की बात कही थी 

अहमदाबाद. आरपीएफ सब-इंपेक्टर सतीश अग्निहोत्री की बर्खास्तगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मई 2020 में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा दिये गये उस निर्णय को बरकरार रखा है जिसमें आरपीएफ पर पांच लाख का हर्जाना लगाया गया था. रेल मंत्रालय और आरपीएफ के विरुद्ध अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए जांच में पाया कि यह पद एवं अधिकार के दुरुपयोग का मामला है जिसमें गुजरात हाईकोर्ट द्वारा लगाया गया पांच लाख का जुर्माना सही कदम है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस कदम के लिए क्यों नहीं उनके जुर्माना की राशि 10 लाख कर दी जाये. इसके बाद याचिकाकर्ता पश्चिम रेलवे के डीआईजी और आरपीएफ की ओर से माफी मांगते हुए याचिका वापस ले ली गयी.

पश्चिम रेलवे में रत्लाम स्टेशन पर घटना नवंबर 2015 की है. 2 नवंबर को स्टेशन पर अवध एक्सप्रेस से दो यात्री वीरेंद्र यादव और रजक साहू को सब इंस्पेक्टर सतीश अग्निहोत्री ने सिगरेट पीते पकड़ककर दो-दो सौ रुपए का जुर्माना किया था. जुर्माना भरकर जाने के बाद वीरेंद्र यादव ने 2200 रुपए छीन लेने का आरोप सब इंस्पेक्टर सतीश अग्निहोत्री पर लगाया. जांच में यह झूठी शिकायत निकली. इसकी दो बार जांच करायी गयी, एसआई सतीश पर कोई आरोप तय नहीं हो सका. इसके बावजूद उसे चार्जशीट देकर तत्कालीन डीआईजी और वर्तमान आईजी/आईआरसीटीसी परमशिव (डीए) ने सेवा से बर्खास्त कर दिया. आरपीएफ सब-इंस्पेक्टर सतीश अग्निहोत्री इसकी अपील आईजी और डीजी से की.

दोनों उच्च अधिकारियों की ओर से राहत नहीं मिलने पर सब-इंस्पेक्टर सतीश अग्निहोत्री ने गुजरात हाईकोर्ट, अहमदाबाद में रिट याचिका (सी/एससीए नं. 7466/2019) दायर की. हाईकोर्ट ने अधिवक्ता किरण साह ने सब इंस्पेक्टर का पक्ष रखते हुए बताया कि किस तरह उन्हें टारगेट पर लेकर प्रताड़ित किया गया है. सुनवाई के दौरान वादी का पक्ष सुना और मामले को गंभीरता से लेते हुए इसे पद एवं अधिकार के दुरुपयोग का मामला बताया. कोर्ट ने विभागीय प्रक्रिया और जांच करवाई को भी गलत बताते हुए सब-इंस्पेक्टर सतीश अग्निहोत्री को सभी वेतन-भत्तों के साथ सेवा में बहाल करने का आदेश दिया. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरपीएफ अधिकारियों पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ आरपीएफ पदाधिकारी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये.

सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी सुनवाई में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा आरपीएफ पर लगाए गए पांच लाख के जुर्माने के आदेश को बरकरार रखा है. हालांकि अदालत के आदेश में यह स्पष्ट नहीं है कि जुर्माना की राशि कौन भरेगा. जाहिर से बात है यह सरकार के हिस्से की बात होगी. लेकिन हालात और हर स्तर पर सुनवाई की अवहेलना से स्पष्ट है कि आरपीएफ के आला अधिकारियों की मंशा अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई करने वाली रही है. यह कोर्ट ने भी माना है. ऐसे में यह हर्जाना तत्कालीन डीआईजी परमशिव, तत्कालीन आईजी/सीएससी एके सिंह (रिटायर्ड) तथा डीजी/आरपीएफ से क्यों नहीं वसूला जाना चाहिए यह अब आरपीएफ में चर्चा का विषय बना हुआ है?

इनपुर सभार रेल समाचार

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