देश-दुनिया

NDA के लिए स्टेशन मास्टरों का काला सप्ताह खत्म, भूख हड़ताल 31 को

तीन चरण में आंदोलन चला रहा है आइस्मां, अंतिम चरण अदालत तक जायेगा

चक्रधरपुर. रात्रिकालीन भत्ते में बेसिक पे पर सीलिंग लगाये जाने के विरोध में देश भर के 39 हजार स्टेशन मास्टरों ने काली पट्टी लगाकर विरोध दर्ज कराया. विरोध प्रदर्शन 20 अक्बूतर से काला सप्ताह मना रहे स्टेशन मास्टरों का विरोध 26 अक्टूबर को खत्म हो गया. आंदोलन के अगले चरण में सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए 31 अक्टूबर को 12 घंटे की भूख हड़ताल करने की घोषणा आइसमां कर चुका है. इसके बाद कानूनी सलाह लेकर अदालत का दरवाजा भी खटखटाने की योजना है.

इससे पहले देशभर भर में स्टेशन मास्टरों ने 15 अक्टूबर को लाइट बंद कर मोमबत्ती जलाकर अपना विरोध दर्ज कर चुके हैं. ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर एसोसिएशन के आह्वान पर नाइट ड्यूटी अलाउंस सीलिंग लिमिट बेसिक पे 43,600 के आधार पर करने का विरोध किया जा रहा है. रेल हंट को जारी बयान में साउथ सेंट्रल रेलवे गुंटकल डिवीजन के ब्रांच सचिव संतोष कुमार पासवान ने विरोध प्रदर्शन को सफल बताया है. संतोष पासवान के अनुसार देश भर के स्टेशन मास्टरों ने ट्रेन संचालन को सुचारू रूप से चालू रखते हुए आज काला रिबन लगाकर विरोध दर्ज कराया है. इसका व्यापक असर पड़ा है.

कई मेडिकल परीक्षणों में यह साबित हुआ है कि रात्रि ड्यूटी करने वाले लोग सामान्य दिनों में काम करने वालों की अपेक्षा अधिक बीमार होते हैं. ऐसे में उन्हें अतिरिक्त भत्ता मिलना चाहिए. दिलीप कुमार, सचिव आइसमां, SER

इससे पहले ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष धनंजय चंद्रात्रे कह चुके है कि नाइट ड्यूटी के सीलिंग का विरोध जारी रहेगा. रेलवे बोर्ड तक पत्र और दूसरे माध्यमों से हमने अपनी बात पहुंचायी है. हमारा हम तीन चरण में आंदोलन होगा. पहला चरण वार्ता, दूसरे चरण में प्रतिक्रिया और तीसरे चरण में हम अदालत का सहारा लेकर निर्णय को स्टे करने की पहल करेंगे.

यह भी पढ़ें : स्टेशन मास्टरों का काला सप्ताह शुरू, काली पट्टी लगाकर किया विरोध, 31 को भूख हड़ताल

उधर दक्षिण पूर्व रेलवे में आइसमां के सचिव दिलीप कुमार ने जारी बयान में बताया है कि पहले भी कई मेडिकल परीक्षणों में यह बात साबित हो चुकी है कि रात्रि ड्यूटी करने वाले लोग सामान्य दिनों में काम करने वालों के अपेक्षा अधिक बीमार होते हैं. ऐसे में उन्हें इसके बदले अतिरिक्त भत्ता दिया जाना चाहिए लेकिन सरकार ने वेतनमान के आधार पर इसका आकलन कर कई विभागों के रेलकर्मियों को उनके नैसर्गिक अधिकार से वंचित कर दिया है.

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