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दो सुरक्षा एजेंसियों के रहते रेल में न कभी खत्म होगी अवैध वेंडिंग, न कभी सुरक्षित होंगे रेलयात्री !

वाणिज्य कर्मियों की तो जवाबदेही तय होती है, उन पर विभागीय कार्रवाई भी की जाती है, परंतु आरपीएफ/जीआरपी कर्मियों एवं अधिकारियों पर कार्रवाई करते समय रेल प्रशासन के हाथ-पांव क्यों कांपने लगते हैं ?

भारतीय रेल में समय-समय पर आरपीएफ और वाणिज्य विभाग द्वारा अवैध वेंडरों के खिलाफ धरपकड़ अभियान चलाया जाता है, जिसमें पकड़े गए कुछ लोगों से जुर्माना वसूल किया जाता है, तो कुछ लोगों पर विधिक कार्यवाही की जाती है।

विश्वसनीय सूत्र और जानकार बताते हैं, जो कि काफी हद तक सही भी है, कि स्टेशन परिसरों और ट्रेनों में अवैध वेंडिंग कराने और उसको शह देने में आरपीएफ और जीआरपी दोनों की महती भूमिका रहती है, और ऐसा भी नहीं है कि इन दोनों के शीर्ष अधिकारी इससे अनभिज्ञ हैं, लेकिन बात जहां तक अवैध कमाई की है, तो सब चलता है।

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ये अवैध वेंडर सड़ा-गला, घटिया, निम्न स्तरीय खाद्य पदार्थ और कोई भी सामान यात्रियों को बेचते हैं, न तो इनका कोई मानक होता है, न ही कोई वैध लाइसेंस, और न ही कोई निर्धारित मूल्य या कीमत। स्वाभाविक है कि अगर ये मानक का पालन करने लग जाएंगे, तो अवैध कमीशन देने के बाद इनकी लागत कहां से निकलेगी?

रेलमंत्री महोदय और रेलवे बोर्ड में बैठे शीर्ष प्रबंधन के जिम्मेदार अधिकारियों को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि इस मामले में आरपीएफ और जीआरपी के कॉकस को कैसे तोड़ा जाए, जिससे कि यात्रियों को अधिकृत वेंडरों से सही और शुद्ध चीज-वस्तु उचित मूल्य पर मिल सके।

इसमें रेलवे के वाणिज्य विभाग को भी बेदाग बरी नहीं किया जा सकता, लेकिन वाणिज्य कर्मियों का इस घालमेल में कम योगदान इसलिए माना जा सकता है, क्योंकि इनके पास वर्दी और कानून की धौंस नहीं है, अथवा ऐसा भी कह सकते हैं कि वाणिज्य अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने अधिकार का अंदाजा ही नहीं है, इसलिए वे भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं।

कुल मिलाकर अवैध वेंडरों को अगर स्टेशन परिसरों और चलती गाड़ियों से पूरी तरह हटाना है, रेल को अनधिकृत बाजार से मुक्त करना है, तो इसके लिए नई पारदर्शी नीति बनाकर आरपीएफ अधिकारियों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने की महती आवश्यकता है, अन्यथा अवैध वेंडिंग के खिलाफ कथित स्पेशल ड्राइव महज खानापूर्ति ही हैं, और यह आगे भी ऐसे ही रहेंगी।

ट्रेनों में धड़ल्ले से चल रहे हॉकर

जानकारों का कहना है कि यह खानापूर्ति तब तक चलती रहेगी, जब तक रेल में दोहरी सुरक्षा व्यवस्था की परिपाटी खत्म नहीं की जाएगी। उनका यह भी कहना है कि या तो आरपीएफ को आईपीसी का फुल पुलिस पावर देकर स्वतंत्र पुलिस फोर्स – राज्य पुलिस के समकक्ष – बनाया जाए, या फिर इसे गृहमंत्रालय को सौंपकर सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) में मर्ज कर इंडिपेंडेंट फोर्स के तौर पर रेल में तैनात किया जाए।

उनका खासतौर पर कहना है कि रेल से जब तक राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) और रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) दोनों में से एक को नहीं हटाया जाएगा, तब तक न तो रेल में अवैध वेंडिंग बंद होगी, न ही रेल में अपराधों की बढ़ती संख्या घटेगी, और न ही रेल से भ्रष्टाचार एवं लूट-खसोट खत्म की जा सकती है। वाणिज्य कर्मियों की तो जवाबदेही तय होती है, यात्रियों की शिकायत मिलने पर उन पर विभागीय कार्रवाई भी की जाती है, परंतु आरपीएफ/जीआरपी कर्मियों एवं अधिकारियों पर कार्रवाई करते समय रेल प्रशासन के हाथ-पांव कांपने लगते हैं!

सुरेश त्रिपाठी, संपादक /RAILWHISPERS.COM

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