रेलहंट ब्यूरो, जमशेदपुर
रेलवे में निजीकरण की चल रही लहर के बीच रेलवे बोर्ड द्वारा पोस्ट सरेंडर करने के फरमान से खलबली मच गयी है. हालांकि रेलवे ने अपने सुधारवादी बयान में यह स्पष्ट किया है कि नये किसी प्रावधान से किसी की नौकरी नहीं जायेगी अलबत्ता कर्मचारियों की कार्य संस्कृति में बदलाव संभव है. रेलवे के इस फरमान का सबसे अधिक असर रेलवे यूनियनों की साख पर पड़ा है जिनसे बिना पूछे एक के बाद एक निर्णय रेलवे बोर्ड स्तर पर लिये जा रहे हैं. इससे एक ओर जहां रेलवे के फेडरेशन सकते में हैं वहीं रेलकर्मी अब यूनियनों की भूमिका पर सवाल उठाने लगे है. उधर, रेलवे यूनियनों ने भी रेलवे बोर्ड और के खिलाफ मोर्चा खोलते ही विरोध के स्वर तेज कर दिये हैं.
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प्रदर्शन में एलारसा के महासचिव पारस कुमार ने मेंस यूनियन की पहल का स्वागत किया और कहा कि उनका संगठन इस लड़ाई में साथ है. सरकार के खिलाफ एकता बनाकर हमें लड़ना होगा. उन्होंने ने कहा कि सरकार शुरू से ही कर्मचारी विरोध में काम करती आयी है. अटल जी के समय पेंशन खत्म किया, अब नौकरी खत्म करने की प्लानिंग चल रही है. लेकिन हम इसमें सरकार को सफल नहीं होने देंगे. रनिंग शाखा के मंडल सचिव एमके सिंह ने सभी साथियों से समाजिक दूरी बनाए सभा को सफल बनाने का अनुरोध किया और इसके लिए संक्रमण के काल में भी बड़ी संख्या में मिले सहयोग के लिए कर्मचारियों का आभार जताया. प्रदर्शन में तापस चट्टराज, अनंत प्रसाद, विश्वजीत पाल, बालक दास, एके सिंह, संजय सिंह, एमपी गुप्ता, बाबू राव, अरुण प्रसाद समेत अन्य रेलकर्मी शामिल थे.