देश-दुनिया

15 लाख रिश्वत लेते राइट्स के जीजीएम को सीबीआई ने दबोचा

केवीआर इंफ्रास्ट्रक्चर को मिला था 11 करोड़ का काम, डेढ़ करोड़ का बिल क्लियर करने के लिए मांगी थी रकम

हैदराबाद. राइट्स लिमिटेड के ग्रुप जनरल मैनेजर, सिविल (जीजीएम/सिविल) के. वेंकटेश्वर राव को सीबीआई ने केवीआर इंफ्रास्ट्रक्चर कांट्रेक्टर फर्म के एक आदमी से 15 लाख रुपये घूस की राशि लेते शनिवार, 28 अप्रैल को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई के अनुसार राव द्वारा यह भारी-भरकम रिश्वत राशि फर्म का डेढ़ करोड़ रुपये का बिल पास किए जाने की एवज में मांगी गई थी. कॉन्ट्रैक्टर फर्म द्वारा इसकी शिकायत किए जाने के बाद सीबीआई ने पूरी तैयारी के साथ रिश्वत लेते हुए राव को रंगेहाथ पकड़ा.

सीबीआई की स्थानीय इकाई ने राव के खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी (अपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत डेढ़ करोड़ रुपये का बिल पास करने के लिए 15 लाख रुपये की रिश्वत मांगे जाने का मामला दर्ज किया है. सीबीआई द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि विस्तृत जांच में पता चला है कि जीजीएम राव विभिन्न ठेकेदारों को ठेके आवंटित करके उनसे अवैध कमीशन के रूप में मोटी रिश्वत की उगाही कर रहे थे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में राइट्स ने तमिलनाडु की कांट्रेक्टर फर्म केवीआर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को 11 करोड़ रुपये का एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट आवंटित किया था. इसके प्रोप्राइटर एम. राजकुमार हैं. फर्म ने डेढ़ करोड़ का छठवां बिल प्रस्तुत किया था, जिसको पास करने के लिए जीजीएम राव ने 15 लाख रुपये के कमीशन की मांग की थी. राजकुमार ने उक्त राशि अपने प्रोजेक्ट मैनेजर शंकर के माध्यम से राव को देने के लिए भेजी थी.

‘भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति’ का रेलकर्मियों पर नहीं पड़ा प्रभाव

इससे करीब एक पखवाड़ा पहले पुणे मंडल, मध्य रेलवे के तीन अधिकारियों के विरुद्ध सीबीआई ने मामला दर्ज किया है. जबकि रिश्वत या कमीशन मांगे जाने पर कई अन्य रेलकर्मियों एवं अधिकारियों के सीबीआई द्वारा रंगेहाथ पकड़े जाने के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं. वित्तवर्ष 2016-17 की तरह ही गत वित्तवर्ष 2017-18 में भी रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामले में सीवीसी की सूची में रेलवे पहले नंबर पर ही बनी हुई है. जबकि केंद्र सरकार और रेलमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का भाषण पिछले चार सालों से लगातार दिया जा रहा है, तथापि उसका कोई प्रभाव कुछ भ्रष्ट एवं रिश्वतखोर रेलकर्मियों एवं अधिकारियों पर पड़ता नजर नहीं आ रहा है.

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