खुला मंच

अगवा राजधानी एक्सप्रेस और घने जंगल में रात्रि जागरण !!

तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर

राजधानी एक्सप्रेस को घंटों बंधक बनाए रखने की कभी न भूलने वाले कांड में एनआईए ने छत्रधर महतो को गिरफ्तार क्या किया, घने जंगल में बीती उस भयावह ठंडी रात की पूरी घटना मेरे आंखों के सामने एक बार फिर फ्लैश बैक की तरह नाचने लगी. 2009 के उस कालखंड में जंगल महल का पत्ता-पत्ता माओवादियों के आतंक से कांपता प्रतीत होता था. इसी दौरान दोपहर खबर मिली कि खड़गपुर-टाटानगर रेल खंड के बांसतोला स्टेशन पर अराजक तत्वों ने दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस को रोक लिया है. बड़ी अनहोनी की आशंका है . पत्रकार के नाते घटना पर नजर बनाए रखने के क्रम में ही थोड़ी देर बाद मुझे सूचना मिली कि सुरक्षा के लिहाज से ट्रेन को वापस खड़गपुर लाया जा रहा है. मैं सामान्य बात समझ कर साइकिल से स्टेशन पहुंच गया. लेकिन इसी बीच घटना व्यापक रूप ले चुकी थी. राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि दुनिया की मीडिया में यह घटना सुर्खियों में आ चुकी थी.

दफ्तर से मुझे तत्काल घटनास्थल पर पहुंचने को कहा गया. एक मित्र की बाइक के पीछे बैठ कर मैं मौके को रवाना हुआ. तब तक शाम का अंधियारा घिर चुका था. तिस पर शीतलहरी अलग चुनौतियां पेश कर रही थी. घटनास्थल से कुछ पहले एक और पत्रकार मित्र बाइक पर ही हमारा इंतजार कर रहे थे. दो बाइकों पर सवार होकर हम घने जंगलों के बीच की सायं-सायं करती पगडंडियों से होते हुए बांसतोला स्टेशन की ओर बढ़ चले. ऊंची-नीची पगडंडियों पर रास्ता बताने वाला भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा था. मुसीबत यह भी थी कि माओवादी हमें सुरक्षा जवान समझ सकते थे और सुरक्षा जवानों को हमारे माओवादी होने का भ्रम हो सकता था.

दूरी तय होने के बाद हमें राजधानी एक्सप्रेस के जेनरेटर की आवाज सुनाई देनी लगी और बांसतोला हाल्ट भी दिखाई देने लगा. लेकिन एक नई मुश्किल हमारे सामने थी. स्टेशन को जाने वाले कच्चे रास्ते पर बड़े-बड़े पेड़ गिरे पड़े थे. हम खुद ही उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ने लगे. लेकिन कई पेड़ से तार बंधा नजर आने से हम कांप उठे, क्योंकि लैंड माइंस का खतरा था. किसी तरह स्टेशन पहुंचे तो वहां खड़ी राजधानी एक्सप्रेस को अत्याधुनिक असलहों से लैस सुरक्षा जवान घेरे खड़े थे. खबर और फोटो भेजने के लिए हमें झाड़ग्राम जाना पड़ा. खबर भेजने के दौरान ही हमें मालूम हुआ कि राजधानी एक्सप्रेस को बांसतोला से झाड़ग्राम लाया जा रहा है. हम मौके पर दौड़े. वहां सुनसान स्टेशन पर बस मीडिया के लोग ही दिखाई दे रहे थे. इस तरह घने जंगल में हमारी वो पूरी रात किसी भयावह दु:स्वपन की तरह बीती.

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